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Writer's pictureUmesh Chandra

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का वर्तमान परिदृश्य

 

 परिचय: मानसिक स्वास्थ्य पर एक अनिवार्य दृष्टिकोण

 

मानसिक स्वास्थ्य आज के समय में एक गंभीर मुद्दा है, और यह केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि यह विश्वभर में एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है। मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध व्यक्ति की मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्थिति से है, और यह तय करता है कि वह किस प्रकार अपनी जिंदगी के दैनिक तनावों से निपटता है। दुर्भाग्य से, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी भारत में एक गहरा कलंक जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से लोग खुलकर अपनी समस्याओं को व्यक्त नहीं करते और न ही सही समय पर आवश्यक मदद लेते हैं।



विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2030 तक मानसिक बीमारियाँ वैश्विक स्तर पर बीमारी का प्रमुख कारण बन सकती हैं। भारत में इस समस्या की गंभीरता और भी बढ़ जाती है क्योंकि यहाँ जनसंख्या का बड़ा हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच से वंचित है।

 

 भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ एक गंभीर सामाजिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी हैं। भारतीय राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, लगभग 150 मिलियन लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं, जिनमें से 80% से अधिक लोग इलाज से वंचित रहते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है मानसिक बीमारियों के प्रति समाज का नकारात्मक दृष्टिकोण और जागरूकता की कमी।

 

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, संसाधनों की अनुपलब्धता, और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी इस संकट को और भी बढ़ा देती है। मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की संख्या बहुत कम है और वे भी शहरों तक सीमित हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है।

 

 मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रमुख कारण

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के विभिन्न कारण हैं, जिनमें से कुछ व्यक्तिगत होते हैं और कुछ सामाजिक और सांस्कृतिक कारक से जुड़े होते हैं। आइए इन प्रमुख कारणों को समझते हैं:


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1. सामाजिक कलंक (Stigma) 

   मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में मौजूद नकारात्मक धारणाएँ और कलंक सबसे बड़ा कारण है कि लोग अपनी समस्याओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। मानसिक बीमारियों को अक्सर कमजोर मानसिकता, आलस्य, या सामाजिक समस्याओं के रूप में देखा जाता है। यह मानसिक रोगियों को अलग-थलग कर देता है और उन्हें मदद लेने से रोकता है।

 

2. गरीबी और बेरोजगारी 

   गरीबी, बेरोजगारी, और आर्थिक अनिश्चितता मानसिक तनाव का मुख्य कारण होते हैं। जब व्यक्ति अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता या अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहता है, तो उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित होती है। भारत में गरीब और निम्न-आय वर्ग के लोग विशेष रूप से इस समस्या से प्रभावित हैं।

 

3. शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली 

   तेजी से हो रहे शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। बड़े शहरों में रहने वाले लोग अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, काम का तनाव, और समाजिक अलगाव का शिकार होते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति खराब होती है।

 

4. परिवारिक और सामाजिक दबाव 

   भारतीय समाज में पारिवारिक और सामाजिक दबाव बहुत अधिक होता है। युवा वर्ग पर करियर, शिक्षा, और शादी को लेकर अत्यधिक दबाव रहता है। महिलाओं के मामले में, खासकर घरेलू महिलाओं और कामकाजी महिलाओं के ऊपर दोहरी जिम्मेदारियाँ होती हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

5. शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध 

   शारीरिक बीमारियाँ, जैसे कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग आदि का मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जब व्यक्ति शारीरिक रूप से बीमार होता है, तो वह मानसिक रूप से भी अस्वस्थ हो सकता है। यह विशेषकर लंबे समय तक बीमार रहने वाले लोगों में देखा जाता है।

 

6. अल्कोहल और नशे की लत 

   भारत में शराब और नशे की लत मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक बड़ा कारण है। शराब और नशे के सेवन से मानसिक विकार जैसे अवसाद, चिंता और आक्रामकता बढ़ सकते हैं। नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति को सामाजिक अलगाव और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है, जो उसकी मानसिक स्थिति को और बिगाड़ देता है।

 

 मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के सामान्य प्रकार

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याएँ देखी जाती हैं। इनमें से कुछ सामान्य मानसिक बीमारियाँ निम्नलिखित हैं:

 

1. अवसाद (Depression) 

   अवसाद सबसे आम मानसिक समस्या है और यह गंभीर रूप से व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। इसके लक्षणों में लगातार उदासी, निराशा, आत्मविश्वास की कमी, और जीवन के प्रति रुचि का कम होना शामिल है।

 

2. चिंता विकार (Anxiety Disorders) 

   चिंता विकार वह स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति अत्यधिक चिंता और डर का अनुभव करता है, जो उसके दैनिक जीवन में बाधा उत्पन्न करता है। यह स्थिति मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से नुकसानदायक हो सकती है।

 

3. बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) 

   इस विकार में व्यक्ति के मूड में अत्यधिक बदलाव होते हैं। वह कभी बहुत उत्साहित और ऊर्जावान हो सकता है, तो कभी अचानक से निराशा और थकावट महसूस कर सकता है।

 

4. सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) 

   सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता और कल्पना के बीच का अंतर नहीं समझ पाता। इसमें व्यक्ति को भ्रम और मतिभ्रम हो सकते हैं और उसकी सोचने और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

 

5. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) 

   यह विकार उन लोगों में होता है जिन्होंने किसी दर्दनाक घटना का सामना किया होता है, जैसे दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा, या हिंसा। इस विकार में व्यक्ति बार-बार उस घटना को याद करता है और तनाव महसूस करता है।

 

 मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और चुनौतियाँ

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोगों में से 80% को आवश्यक चिकित्सा सेवाएँ नहीं मिल पातीं। इसके कई कारण हैं:

 

1. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी 

   भारत में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की संख्या बहुत कम है। मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, और काउंसलर की भारी कमी है, जिससे सभी को समय पर उचित देखभाल और इलाज नहीं मिल पाता।

 

2. मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी 

   मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिकित्सा सुविधाओं की भी भारी कमी है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच लगभग नगण्य है। यहाँ तक कि शहरों में भी गुणवत्ता युक्त मानसिक स्वास्थ्य देखभाल बहुत सीमित है।

 

3. स्वास्थ्य बीमा का अभाव 

   मानसिक स्वास्थ्य के इलाज के लिए बीमा सेवाओं का अभाव है। हालाँकि 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (Mental Healthcare Act) के तहत बीमा सेवाओं को मानसिक बीमारियों के लिए उपलब्ध कराया गया है, परंतु इसके क्रियान्वयन में कई खामियाँ हैं।

 

4. अशिक्षा और जागरूकता की कमी 

   मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी भी एक प्रमुख बाधा है। लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों, समस्याओं, और इलाज के तरीकों की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे सही समय पर मदद नहीं ले पाते।

 

 सरकारी पहल और मानसिक स्वास्थ्य पर नीतियाँ

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इन प्रयासों में प्रमुख हैं:

 

1. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Programme - NMHP) 

   यह कार्यक्रम 1982 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना, मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों का विकास करना था।

 

2. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (Mental Healthcare Act, 2017) 

   यह अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। इस कानून के तहत, मानसिक रूप से बीमार लोगों को उपचार और पुनर्वास की कानूनी गारंटी दी गई है।

 

3. आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Scheme) 

   इस योजना के तहत मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार ग्रामीण और गरीब तबके तक करने की योजना है। इसके अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक लाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

4. मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान 

   भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अभियान शुरू किए हैं। इनमें स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन भी शामिल है।

 

 मानसिक स्वास्थ्य के समाधान और सुधार के उपाय

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है। हालांकि सरकार और कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने कुछ महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं, लेकिन अभी भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और सुविधाओं में कई कमियाँ हैं। कुछ संभावित समाधान और सुधार के उपाय निम्नलिखित हैं:



 

 1. मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समाज में व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। स्कूलों, कॉलेजों, कार्यस्थलों और समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करके लोगों को इस विषय में शिक्षित किया जा सकता है। जब लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को पहचानेंगे और समझेंगे, तो वे इसके समाधान के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करेंगे।

 

सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों और मीडिया के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक कलंक (stigma) को दूर करने के प्रयास भी किए जाने चाहिए। जब लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को स्वीकार करेंगे और इलाज के लिए आगे आएंगे, तो इसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

 

 2. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। इस कमी को दूर करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार आवश्यक है। सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को जोड़ना चाहिए और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।

 

इसके अलावा, टेली-मेडिसिन और डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करके ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में भी सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं। इससे लोग बिना भौगोलिक सीमाओं के इलाज प्राप्त कर सकेंगे।

 

 3. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाना

भारत में मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, और काउंसलर की भारी कमी है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए इन पेशेवरों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पाठ्यक्रमों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।

 

साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को देश के हर कोने में पहुँचाने के लिए उनके लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएँ चलाई जा सकती हैं, ताकि वे दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में भी काम करने के लिए प्रेरित हों।

 

 4. मानसिक स्वास्थ्य बीमा का विस्तार

हालाँकि, 2017 में लागू किए गए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम के तहत मानसिक स्वास्थ्य के लिए बीमा सुविधाओं की उपलब्धता की व्यवस्था की गई है, परंतु इसका क्रियान्वयन अभी भी पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं है। बीमा कंपनियों को मानसिक बीमारियों के इलाज को कवर करने के लिए उचित योजनाएँ बनानी चाहिए और इसे लागू करना चाहिए, ताकि मानसिक रोगियों को आर्थिक रूप से भी सहायता मिल सके।

 

साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ आम आदमी की पहुँच में हों और लोगों को इसका लाभ उठाने में कठिनाई न हो।

 

 5. मानसिक स्वास्थ्य पर सरकारी नीतियों में सुधार

मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रभावी सरकारी नीतियों का निर्माण और उनका सही क्रियान्वयन बेहद आवश्यक है। सरकार को मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक बजट आवंटित करना चाहिए और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी स्वास्थ्य सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए।

 

साथ ही, स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि छात्रों को शुरुआत से ही मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी मिले और उन्हें मदद मिल सके। इसके अलावा, कार्यस्थलों पर भी मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का आयोजन आवश्यक है, ताकि कामकाजी लोगों को तनाव और मानसिक समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन मिल सकें।

 

 6. सामाजिक समर्थन और सामुदायिक भागीदारी

मानसिक स्वास्थ्य में सामाजिक समर्थन का बड़ा योगदान होता है। परिवार, मित्रों और समुदाय का सहयोग मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के उपचार और पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना और एक सहयोगी वातावरण तैयार करना, मानसिक रोगियों की मदद के लिए आवश्यक है।

 

सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सहायता समूह (support groups) बनाए जा सकते हैं, जहाँ लोग एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा कर सकें और मदद प्राप्त कर सकें। इससे मानसिक रोगियों को यह महसूस होगा कि वे अकेले नहीं हैं और समाज उनके साथ है।

 

 7. बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान

बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का समय पर पता लगाना और उनका सही उपचार करना महत्वपूर्ण है। स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग सेवाओं का विस्तार और शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है। बच्चों और किशोरों को तनाव, अवसाद और चिंता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

 

इसके अलावा, माता-पिता को भी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों की मानसिक स्थिति को समझ सकें और समय पर मदद ले सकें।

 

 8. डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ

डिजिटल युग में, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को डिजिटलीकृत करना एक कारगर उपाय हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित मोबाइल एप्लिकेशन, वेबसाइट्स, और ऑनलाइन थेरेपी सेशन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को व्यापक रूप से उपलब्ध कराए जा सकते हैं। टेली-परामर्श और ऑनलाइन काउंसलिंग के माध्यम से लोग मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से आसानी से संपर्क कर सकते हैं, चाहे वे कहीं भी हों।

 

यह सेवा विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है जो व्यक्तिगत रूप से किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के पास नहीं जा सकते या जिनके पास मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सीमित है।

 

 निष्कर्ष

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति अत्यंत गंभीर है, लेकिन इसके समाधान के लिए समुचित प्रयास किए जा सकते हैं। जागरूकता बढ़ाना, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना, और विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाना, ये कुछ ऐसे कदम हैं जो भारत में मानसिक स्वास्थ्य संकट को कम करने में मदद कर सकते हैं।

 

सरकार, गैर-सरकारी संगठन, और समाज के सहयोग से मानसिक स्वास्थ्य के प्रति नकारात्मक धारणाओं को समाप्त किया जा सकता है और इसे एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, जागरूकता कार्यक्रम, और सामाजिक समर्थन मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को जीवन में एक नया रास्ता दिखा सकते हैं।

 

आखिरकार, मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना आवश्यक है क्योंकि यह हमारे जीवन की गुणवत्ता, खुशहाली, और संतुलन को बनाए रखने का आधार है। भारत को मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि हर व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सके।



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